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Showing posts from November, 2020

भावना से कर्तव्य ऊंचा है

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  https://evirtualguru.com/hindi-essays/ भावना से कर्तव्य ऊंचा है Bhavna se Kartavya uncha hai  संसार में असंख्य प्राणी हैं। उनमें सर्वाधिक और विशिष्ट महत्व केवल मनुष्य नामक प्राणी को ही प्राप्त है। इसके मुख्य दो कारण स्वीकार किए जाते या किए जा सकते हैं। एक तो यह कि केवल मनुष्य के पास ही सोचने-समझने के लिए दिमाग और उसकी शक्ति विद्यमान है, अन्य प्राणियों के पास नहीं। वे सभी कार्य प्राकृतिक चेतनाओं और कारणों से करते हैं, जबकि मनुष्य कुछ भी करने से पहले सोच-विचार करता है। दूसरा प्रमुख कारण है मनुष्य के पास विचारों के साथ-साथ भावना और भावुकता का भी होना या रहना। भावना नाम की कोई वस्तु मानवेतर प्राणियों के पास नहीं हुआ करती। भावनाशून्य रहकर वे सिर्फ प्राकृतिक नियमों से प्रेम, भय आदि का प्रदर्शन किया करते हैं। स्पष्ट है कि ये ही वे कारण हैं, जो मानव को सृष्टि का सर्वश्रेष्ट प्राणी सिद्ध करते हैं। मानव जीवन में जो कुछ भी सुंदर, अच्छा और प्रेरणादायक है, वह भावनाओं के कारण या भावना का ही रूप है। मानव-जीवन में जो भिन्न प्रकार के संबंध और पारस्परिक रिश्ते-नाते हैं, उनका आधारभूत कारण भी भावना-प्रव

जीवन का उद्देश्य क्या।

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  जीवन का उद्देश्य क्या। हर व्यक्ति चाहता है कि वह शांतिपूर्ण जीवन निर्वाह करे परन्तु जीवन की इस राह को ढूंढने में वह भटक जाता है और भौतिक सुख सुविधाओं और धन को आधार मान लेता है। वास्तव में मूल आवश्यकताओं जैसे भोजन,वस्त्र, भवन आदि जुटाने के बाद अन्य चीजें इच्छाओं की श्रेणी में आती है और यह कभी पूरी नही होती और व्यक्ति लोभी बन जाता है यहां तक कि मृत्यु के समय भी यह सोचता है कि क्या नहीं पाया । एक बार एक सेठ के चार पुत्र थे वह बहुत बीमार हुआ मृत्यु का समय निकट आया तो चारों पुत्र पास आ गए  सबको अपने पास देख कर उसने गुस्से में पूछा तुम सब यहां हो तो दुकान का क्या होगा। अगर हम मूल आवश्यकतओं की पूर्ति के बाद थोड़ा बहुत धन उन लोगों के लिये खर्च करते हैं जो अपनी मूल आवश्यकता पूरी नहीं कर पाते तो समाज मे सदभावना बनी रहती है एकरसता आती है हम पुण्य अर्जित कर पाते है। इस संसार में अच्छाई और बुराई दोनो है और निरन्तर हमारे भीतर युद्ध चलती रहती है कई बार हम भटक जाते है। तुलना ,ईर्ष्या,अहंकार,प्रतिस्पर्धा से दूर रहने पर ही जीवन में शांति और आनंद की प्राप्ति हो सकती है । नर सेवा ही नारायण सेवा है।भगवान

वाह जिंदगी वाह

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   वाह जिंदगी वाह सुबह जल्दी उठो,मुस्कुराओ,नया दिन,भगवान का शुक्रिया करो,सैर पर निकलो। वाह प्रकृति बाहें पसारे हमारा स्वागत कर रही है।पंछी सब चहक रहे है। वाह भगवान ने हमें कितना अच्छा शरीर दिया और जिसे चलाने के लिए फल सब्जियां अनाज भी दिए।शरीर को उपयोग करते जाओ तो वह चलता है और अगर आलस्य हो तो वह खराब हो जाता है फिर उसे न अपने लिए उपयोग कर सकते न दूसरों के लिए। इसी तरह बुद्धि भी उपहार में दे दी उसे जैसे चाहे उपयोग करो सकारात्मक या नकारात्मक यह सब हमारे हाथ मे है। इतनी आसान जिंदगी को हमने ही इतना तो मुश्किल बना दिया। वाह वाह जैसी जिंदगी में हमने ही तो ईर्ष्या,द्वेष,प्रतिस्पर्धा भर दी और तनाव में आकर हाय हाय मचा दी।अपने जीवन को मुश्किल बना दिया। पढ़ाई के बोझ ने बच्चों के दिमाग को मकेनिकल  (mechanical) बना दिया,जैसे सब सोचते, वे भी वैसे ही सोचते,सकारात्मक तो जैसे सोचना ही भूल गए है। सारा बचपन और जवानी दाव पर लगा दी। डर जीवन का हिस्सा बन गया कि कुछ न बन पाए तो क्या होगा। हल्का रहना तो जैसे भूल गए। यह भूल गए कि हल्का रहकर,खुश रहकर लक्ष्य को पाना ज्यादा आसान है। इस अच्छी जिंदगी को किसने बोझ ब

भाग्यवान कौन

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    भाग्यवान कौन अगर हम अपने चारों तरफ देखें तो हम उसे ही भाग्यवान समझेंगे जिसके पास धन दौलत भरपूर हो वह जो चाहे खरीद सके पर क्या वो सही मायने में सुखी और भाग्यवान है। दूसरी तरफ हम कहते है अंतर्मुखी सबसे सुखी और कहते हैं पहला सुख निरोगी काया। तो भाग्यवान कौन अंतर्मुखी निरोगी काया वाला या धन दौलत वाला । धन केवल हमें भौतिक सुख दे सकता है। मन का नहीं। इससे भी अधिक भाग्यवान  वह जो भगवान के समीप हो उसकी छत्रछाया में हो उसके समान निर्मल और शीतल हो, परोपकारी हो,दूसरों को सुख देने वाला हो क्योंकि दूसरो को सुख देने से हम दुआओ के पात्र बन जाते है और दुआयें धन से बढ़कर है । वह हमें मन का सुख प्रदान करती है। अच्छे कर्म हमारा भाग्य बनाते है। दूसरो को खुशी देना ,सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करके हम वातावरण को अच्छा बना सकते है। आदर सम्मान प्यार से भरा जीवन मिलना और दूसरों को प्यार सम्मान देना यही भाग्य की निशानी है। पद प्रतिष्ठा सुंदरता कुछ समय तक ही हो सकती है। आज है तो कल जा भी सकती है। वह अहंकार को भी जन्म दे सकती है। लेकिन मनुष्य का स्वभाव उसे खुद को व दूसरों सुख पहुंचाता है। और एक सन्तुष्ट  संगठन न