Posts

Showing posts with the label Avyakt

जीवन का उद्देश्य क्या।

Image
  जीवन का उद्देश्य क्या। हर व्यक्ति चाहता है कि वह शांतिपूर्ण जीवन निर्वाह करे परन्तु जीवन की इस राह को ढूंढने में वह भटक जाता है और भौतिक सुख सुविधाओं और धन को आधार मान लेता है। वास्तव में मूल आवश्यकताओं जैसे भोजन,वस्त्र, भवन आदि जुटाने के बाद अन्य चीजें इच्छाओं की श्रेणी में आती है और यह कभी पूरी नही होती और व्यक्ति लोभी बन जाता है यहां तक कि मृत्यु के समय भी यह सोचता है कि क्या नहीं पाया । एक बार एक सेठ के चार पुत्र थे वह बहुत बीमार हुआ मृत्यु का समय निकट आया तो चारों पुत्र पास आ गए  सबको अपने पास देख कर उसने गुस्से में पूछा तुम सब यहां हो तो दुकान का क्या होगा। अगर हम मूल आवश्यकतओं की पूर्ति के बाद थोड़ा बहुत धन उन लोगों के लिये खर्च करते हैं जो अपनी मूल आवश्यकता पूरी नहीं कर पाते तो समाज मे सदभावना बनी रहती है एकरसता आती है हम पुण्य अर्जित कर पाते है। इस संसार में अच्छाई और बुराई दोनो है और निरन्तर हमारे भीतर युद्ध चलती रहती है कई बार हम भटक जाते है। तुलना ,ईर्ष्या,अहंकार,प्रतिस्पर्धा से दूर रहने पर ही जीवन में शांति और आनंद की प्राप्ति हो सकती है । नर सेवा ही नारायण सेवा है।भगवान

भाग्यवान कौन

Image
    भाग्यवान कौन अगर हम अपने चारों तरफ देखें तो हम उसे ही भाग्यवान समझेंगे जिसके पास धन दौलत भरपूर हो वह जो चाहे खरीद सके पर क्या वो सही मायने में सुखी और भाग्यवान है। दूसरी तरफ हम कहते है अंतर्मुखी सबसे सुखी और कहते हैं पहला सुख निरोगी काया। तो भाग्यवान कौन अंतर्मुखी निरोगी काया वाला या धन दौलत वाला । धन केवल हमें भौतिक सुख दे सकता है। मन का नहीं। इससे भी अधिक भाग्यवान  वह जो भगवान के समीप हो उसकी छत्रछाया में हो उसके समान निर्मल और शीतल हो, परोपकारी हो,दूसरों को सुख देने वाला हो क्योंकि दूसरो को सुख देने से हम दुआओ के पात्र बन जाते है और दुआयें धन से बढ़कर है । वह हमें मन का सुख प्रदान करती है। अच्छे कर्म हमारा भाग्य बनाते है। दूसरो को खुशी देना ,सन्तुष्ट रहना और सन्तुष्ट करके हम वातावरण को अच्छा बना सकते है। आदर सम्मान प्यार से भरा जीवन मिलना और दूसरों को प्यार सम्मान देना यही भाग्य की निशानी है। पद प्रतिष्ठा सुंदरता कुछ समय तक ही हो सकती है। आज है तो कल जा भी सकती है। वह अहंकार को भी जन्म दे सकती है। लेकिन मनुष्य का स्वभाव उसे खुद को व दूसरों सुख पहुंचाता है। और एक सन्तुष्ट  संगठन न